एक ऐसा टॉस जिसमे भारत ने जीती थी पाकिस्तान से शाही बग्गी।
अकसर जब भी हम टॉस या सिक्का उछलने की बात करते हैं तो हमारे मस्तिष्क में खेलों की छवि आ जाती है, क्योंकि टॉस शब्द का इस्तेमाल ज्यादातर खेलों में ही देखने को मिलता है। लेकिन जब भारत - पाकिस्तान के बीच टॉस की बात हो तो हमारा मन मस्तिष्क स्वतः ही क्रिकेट के मैदान की कल्पना में पहुँच जाता है और भारत पाकिस्तान के बीच क्रिकेट से जुड़े तमाम किस्से जेहन में घूमने लगते हैं। घूमे भी क्यों नहीं? जब भी भारत पाक के बीच क्रिकेट की बात हो तो शायद ही कोई ऐसा खेल प्रेमी हो जो इन दोनों टीमों को भीड़ते न देखना चाहता हो, यह बात अलग है कि राजनीतिक कारणों से अब भारत पाक के बीच हमें इंटरनेशनल टूर्नामेंटों में इक्के दुक्के मैच के अलावा कोई भी आपसी भिड़ंत देखने को नहीं मिलती है। फिर भी जितने भी मैच खेले जाते हैं वे दुनियाँ के सबसे बड़े क्रिकेट मैच बन ही जाते हैं।
लेकिन इस बार जिस टॉस की बात हम कर रहे हैं वह न तो भारत पाक के बीच क्रिकेट के टॉस और न ही अन्य किसी खेल के टॉस की बात की जा रही है। दरअसल इस बार जिस टॉस की बात हम आप लोगों के बीच लेकर आये हैं वह खेल के मैदान से अलग भारत पाक के बीच संपत्ति के बटवारे के मैदान से है। जी हाँ बात तब की है जब 1947 में देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुवा और अंग्रेजों व 'मुस्लिम लीग' की 'टू नेशन थिएरी' के तहत देश का विभाजन किया गया, दोनों देशों के बीच जनसंख्या अनुपात के हिसाब से सरकारी संपत्तियों का बटवारा किया गया, चाहे वह सेना, सैन्य सामाग्री, खाद्य सामग्री, धन सम्पदा, पुस्तकें या फिर सोना इत्यादि हो सभी चीजों का शान्ति पूर्वक बटवारा किया गया। लेकिन बटवारे के बीच मुसीबत तब खड़ी हुई जब राष्ट्रपति भवन की शाही बग्गी पर दोनों देशों ने अपना-अपना हक जमाना शुरू किया। दोनों देशों में से कोई भी इस शाही बग्गी को किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं थे, समस्या बढ़ती गई और समस्या का एकमात्र हल 'टॉस' अंगरक्षकों के चीफ कमांडेंट ने दोनों पक्षो के सम्मुख रखा। उन्होंने भारत की तरफ से राष्ट्रपति बॉडीगार्ड रेजिमेंट के कमांडेंट 'लेफ्टिनेंट कर्नल गोविन्द सिंह' एवं पाकिस्तान की ओर से 'याकूब खान' को टॉस के लिए राजी किया, जब टॉस का सिक्का उछला तो सिक्का भारत के पक्ष में जा गिरा जिससे यह ऐतिहासिक शाही बग्गी भारत के राष्ट्रपति भवन की शोभा बन भारत ने टॉस के माध्यम से जीत ली।
आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति के तौर पर सर्वप्रथम 'डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इस बग्गी का प्रयोग किया। उन्होंने 1950 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर इसका उपयोग किया उसके बाद भी कुछ अन्य राष्ट्रपतियों द्वारा इसका समय- समय पर उपयोग किया गया। काले रंग की इस शाही बग्गी सोने की परत का काम किया गया है, इसे खींचने के लिए खास नस्ल के घोड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजनेताओं की सुरक्षा की दृष्टि से बग्गी की जगह बुलेटप्रूफ वाहनों का इस्तेमाल होने लगा। अभी के दौर में भूतपूर्व राष्ट्रपति 'प्रणव मुखर्जी' एवं भूतपूर्व राष्ट्रपति 'रामनाथ कोविंद' द्वारा शपत ग्रहण समारोह से पूर्व इस खूबसूरत बग्गी की सवारी की गई थी।
- अंकित तिवारी
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